फीसवृद्धि के खिलाफ आंदोलन
जेएनयू में फीसवृद्धि के खिलाफ आंदोलन को आज 61 दिन हो चुके है और विरोध लगातार जारी है।
300 से अधिक छात्रों तथा कार्यकताओं को जेएनयू प्रशासन के द्वारा निलंबित करने का फरमान जारी किया गया हैं। 61+ दिन से चल रहे इस फीसवृद्धि के खिलाफ आंदोलन में जेएनयू के छात्र पूरी दृढ़ता के साथ शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे हैं। कुछ लोगों के लिए यह बहुत ही आश्चर्यजनक लग सकता है परन्तु जेएनयू प्रशासन अपनी नव-उदरवाद की नीतियां को लागू करने पर तथा शिक्षा को गरीबों तथा वंचितों की पहुच से दूर करने को अमादा हैं, जिसके कारण वह विरोध कर रहे छात्रों तथा कार्यकर्ताओं को धमकाने और निलंबित करने के अलग-अलग हथकंडे अपना रहा हैं। चुनिंदा लोगों को बिना किसी कार्यवाई तथा जांच के शिक्षण कार्य से निलंबित किया गया हैं। जेएनयू प्रशासन के इस अलोकतांत्रिक रवैये व बेहुदे कानून के खिलाफ विरोध कर रहे छात्रों को बर्बर दमन का सामना करना पड़ रहा हैं। जिसके चलते 6 स्टूडेंट समेत 4 AISA कार्यकर्ताओं को अकादमिक रूप से निलंबित कर दिया गया हैं। बिना किसी जांच पड़ताल के यह जेएनयू एडमिन व VC की पूर्वाग्रह तथा अक्षमताओं को उजागर करता हैं।
VC का यह कदम साफ दर्शाता हैं कि वो छात्रों के आंदोलन को कमजोर करना चाहते हैं जिनमें से कुछ छात्रों को निशाना बनाकर उनका भविष्य अंधकार में धकेला जा रहा हैं। लम्बे समय बाद VC एक दिन अचानक कैंपस में आये, उनका विरोध करने पहुंचे छात्रों पर कार चढ़ाने की कोशिश की गयी। एक छात्र तो काफी देर तक चलती कार पर लटका रहा। जब यह प्रकरण सामने आया तो VC ने उल-जलूल बयान देकर तथा मीडिया के माध्यम से इस प्रकरण में छात्रों को ही बदनाम करने की कोशिश का एक जरिया बनाया।
इस तरह चुनिंदा छात्रों को चिन्हित करना तथा उनके खिलाफ कार्यवाही करना स्पष्ठ दर्शाता हैं कि VC कैम्पस में शांति कायम करने के पक्ष में नहीं हैं। हालांकि कितनी ही बार देखा गया हैं कि VC तथा उसके चमचे (ABVP) छात्रों के साथ मार-पीट करते है। इससे यह साफ प्रतीत हो रहा है कि जेएनयू प्रसासन अपने RSS के एजेंडे को अंजाम दे रहा है तथा अपनी अयोग्यताओं का प्रदर्शन कर रहे हैं।
जेएनयू के इस फीस-वृद्धि आंदोलन ने लगभग देश के सभी कैम्पस के छात्रों में जागरूकता की अलख जगाने का प्रयास किया हैं जिससे यह वर्तमान तानाशाही सरकार डरी हुई हैं और आंदोलन को दबाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं।
एफटीआईआई और एसआरएफटीआई के छात्रों के विरोध प्रदर्शन के आगे आखिर प्रशासन को झुकना पड़ा है और फीस वृद्धि वापस लेनी पड़ी
हमें वुडी गुथेरी के गिटार का वह दृश्य तो याद याद होना चाहिए जिसमें लिखा था कि यह मशीन फांसीवादियो को मार देगी फासिस्ट हर छोटी-बड़ी रचनात्मकता और प्रतिरोध के स्वर से डरते हैं. बिल्कुल इसी तरह का पागलपन इस सरकार में देखा जा सकता है जो हर तरह के सरकारी संस्थानों बर्बाद करने के लिए अमादा है. अभी हाल में एफटीआईआई और एसआरएफटीआई के छात्रों द्वारा फीसवृद्धि के सवाल पर जो आंदोलन खड़ा किया गया वह नव उदारवादी नीतियों के मॉडल के खिलाफ था जिसे यहां सरकार लागू करना चाहती है.
शिक्षा की शुल्क दरें पिछले 3 सालों में दो गुना कर दी गई है. प्रवेश परीक्षा की फीस 1,510 से बढ़ाकर बेतरतीब तरीके से 10,000 कर दी गई. बहुत सारे छात्र जो गरीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं वे तो सीधे-सीधे इन संस्थानों से बाहर हो जाएंगे. इसी का विरोध करते हुए छात्र भूख हड़ताल पर गए थे जिस कारण गवर्निंग काउंसिल को आपातकालीन बैठक बुलानी पड़ी और इस बात पर सहमत होना पड़ा कि वह सालाना फीस वृद्धि को संशोधित करेंगे और बढ़ी हुई प्रवेश परीक्षा फीस को वापस भी करेंगे. यह आंदोलन आयुर्वेदिक कॉलेज उत्तराखंड में, जेएनयू में, एम्स में, आईआईटी में, आईआईएमसी व तमाम एमएचआरडी के संस्थानों में हो रहा है जिस वजह से सरकार दबाव में है. सरकार ने आईआईटी में एमटेक की फीस वृद्धि के प्रस्ताव को भी वापस लिया है. गरीब वंचित छात्रों के लिए सस्ती शिक्षा व संस्थानों तक पहुँचने को लेकर छात्रों के इन आंदोलनों की वजह से सरकार को बैकफुट पर जाती दिख रही है. इन्हीं आंदोलनों के चलते अब सरकार के लिए संस्थानों में फीसवृद्धि करना आसान काम नहीं रह गया है. छात्र अब इसके लिए मुखर होकर लड़ रहे हैं, आवाज उठा लड़ रहे हैं, और शिक्षा के सवाल पर मजबूत लड़ाई लड़ रहे हैं. देश में सस्ती शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार की लड़ाई के सवाल को अब छात्र छात्राओं ने अपने हाथ में ले लिया है. वह अब सरकारी संस्थानों में तमाम गरीब, मजदूर, आदिवासी, दलित छात्रों की सुनिश्चितता को बनाए रखने की लड़ाई को लड़ रहे हैं और सरकारों को यह दिखा रहे हैं कि उनके हक और अधिकार को सरकार इस तरह से छीन नहीं सकती. सस्ती शिक्षा देश के प्रत्येक छात्र-छात्रा का अधिकार है और यह उसे मिलना ही चाहिए. नव उदारवादी पूंजीवादी नीतियों को शिक्षण संस्थानों तथा तमाम जन-संस्थानों से दूर रखना ही होगा. पूंजी-परस्त फासीवादी सरकारों को यह समझ लेना चाहिए कि देश के युवा, छात्र-छात्राएं उनकी नीतियों को सफल नहीं होने देंगे. छात्र-छात्राओं के प्रतिरोध की आवाज विश्वविद्यालयों और तमाम संस्थानों से गूंजती रहेगी जिससे सरकारों के सिंहासन हिलते रहेंगे.
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