गंगा को बचाने के लिए अनशनरत प्रो. गुरुदास अग्रवाल नहीं रहे!
गंगा को बचाने के लिए 112 दिनों से अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे पूर्व आईआईटी प्रोफ़ेसर और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव प्रोफ़ेसर जी. डी. अग्रवाल (स्वामी सानंद ) ने कल 11 अक्टूबर 2018 को अपनी अंतिम साँस ली. स्वघोषित गंगापुत्र नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा प्रो. अग्रवाल की मांगों को बहुत ही बेशर्मी से अनदेखा किया गया है। प्रो. अग्रवाल को प्रदूषित गंगा को स्वच्छ करने की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा के रूप में याद किया जाएगा तो मोदी सलीके नेताओं को ‘गंगा मइया’ का नाम अपने राजनीतिक लाभ के लिए। गाँधी जी से प्रेरित प्रो. अग्रवाल इसके पूर्व गंगा नदी को बचाने के लिए कई आंदोलन कर चुके हैं। गंगा के अथक प्रचारक ने बेहद तर्कपूर्ण ढंग से कहा कि नदी की अविरल धारा (निर्बाध प्रवाह) पूरी नदी घाटी के लिए जरूरी है. नदी पर बन रहे अनियंत्रित बांधों की वजह से गंगा में तलछट (पानी से निकलने वाली गंदगी) बढ़ रही है, यही कारण है कि लगातार बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है।
2014 में प्रधानमंत्री मोदी बनारस के सांसद चुने गए। चुनाव अभियान के दौरान उनका मुख्य एजेंडा था कि वे गंगा को प्रदूषण मुक्त करेंगे। सत्ता में आने के बाद उन्होंने बहुप्रचारित “नमामि गंगे” परियोजना भी चलाई। लेकिन यह परियोजना महज एक जुमला बनकर रह गई। 2017 में जाँच के लिए मालवीय ब्रिज (वाराणसी) से लिए गए नमूनों में पहले की अपेक्षा 20 गुना ज्यादा दूषित बैक्टीरिया मिले, इस बात को सरकार ने खुद आरटीआई में स्वीकार किया है.(इंडिया टुडे, 3 जुलाई, 2018)
गंगा की इस दयनीय स्थिति से आहत प्रो. अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्रियों सहित प्रधानमंत्री मोदी को कई पत्र लिखे। 5 अगस्त 2018 को उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को अपना तीसरा और अंतिम पत्र लिखा…
…. आपने 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बनारस में कहा था कि आप बनारस इसलिए आए हैं क्योंकि माँ गंगा ने आपको बुलाया है। उस समय मुझे विश्वास था कि आप सचमुच गंगाजी के लिए कुछ करेंगे….. मेरी यह उम्मीद थी कि आप दो कदम आगे बढ़कर गंगाजी के लिए विशेष प्रयास करेंगे क्योंकि आपने गंगाजी से सम्बंधित अलग से मंत्रालय भी बना दिया। लेकिन पिछले चार सालों में आपके द्वारा किए गए प्रयासों से गंगा सफाई में कोई भी फायदा नहीं हुआ, उसकी जगह पर पूंजीपतियों व व्यापारिक घरानों को लाभ जरूर मिला है। अभी तक आपने गंगाजी को सिर्फ लाभ कमाने की दृष्टि से ही सोचा है।” (द वायर, 11 अक्टूबर,2018)
प्रो. अग्रवाल ने सरकार से पत्र लिखकर अपील की कि वो गंगा नदी पर चल रही सभी जल विद्युत् परियोजनाओं पर रोक लगाए, नदी पर वनों की अंधाधुंध कटाई और खनन गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। जब बेशर्म सरकार ने प्रो अग्रवाल के पत्र का जवाब नहीं दिया तो उन्होंने निराजल 20 जून से 9 अक्टूबर तक आमरण अनशन किया।
यह शर्म की बात है कि मोदी सरकार की उदासीनता के चलते देश ने गंगा को प्रदुषण मुक्त करने का संकल्प लिए बेहतरीन पर्यावरणविद को खो दिया है। लेकिन मोदी जी! प्रो.गुरुदास अग्रवाल द्वारा उठाए गए प्रश्न आपको और आपकी सरकार के लिए खतरनाक साबित होंगे।
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