ठोंक दो नीति का विस्तार UPSSF

उप्र में कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। मुख्यमंत्री ने पद ग्रहण करने के बाद शेखी बघारी थी कि अपराधी या तो जेल में रहेंगे या प्रदेश के बाहर भाग जाएंगे। उन्होंने अपनी कुख्यात ठोंक दो नीति का एलान किया था, तमाम निर्दोष नौजवान फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मारे गए।

बहरहाल, आज प्रदेश में जंगल राज का नज़ारा है। दिन दहाड़े हत्याएं हो रही हैं, एक पूर्व विधायक को अपराधियों ने पीट पीट कर मार डाला, बलात्कार की घटनाओं की तो बाढ़ ही आ गयी है। स्वाभाविक रूप से इसकी सबसे ज्यादा गाज गिर रही है, दलितों, गरीबों, महिलाओं पर। सत्ता संरक्षण प्राप्त अपराधी पूरी तरह बेखौफ हो गए हैं। कानून, संविधान को ताक पर रखकर लागू की गई ठोंक दो नीति का कुल मिलाकर परिणाम यही निकला है।

अब जब हालात बेकाबू होते जा रहे है, जनता के तमाम तबके बेचैन और आंदोलित हैं, विशेषकर छात्र नौजवान रोजगार-शिक्षा के चरम संकट के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं, तब योगी सरकार उसी ठोंक दो नीति को एक तरह से कानूनी जामा पहनाते हुए और संस्थाबद्ध करते हुए UPSSF का गठन कर रही है और यह माहौल बना रही है कि सरकार कानून व्यवस्था को लेकर बेहद गंभीर है और अब इस नए बल के माध्यम से इसे हल कर डालेगी।

महामारी, चरम आर्थिक संकट के दौर में जब सरकार दिवलिया हो रही है, तमाम जरूरी मदों में कटौती हो रही है, कर्मचारियों को वेतन देने में संकट खड़ा होने जा रहा है, उस समय 1800 करोड़ रु इस बल के गठन पर खर्च होने जा रहा है।

नार्थ ईस्ट में इंसरजेंसी से निपटने के लिए असम राइफल जैसे बलों के पास जो स्पेशल पॉवर हैं, उनसे लैस यह बल अब किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट या मजिस्ट्रेट ऑर्डर के सर्च कर सकती है और गिरफ्तार कर सकती है।इसके अधिकारियों के खिलाफ किसी भी शिकायत का बिना सरकार की सहमति के कोई कोर्ट भी संज्ञान नहीं ले सकती !

मजेदार यह है कि इसका ऐलान करते हुए बताया गया कि हाई कोर्ट के 18 दिसम्बर, 2019 के आदेश के अनुपालन में इसका गठन किया जा रहा है। दरअसल हाई कोर्ट ने मुजफ्फरनगर, बिजनौर, आगरा में कोर्ट परिसर में हुई हत्यायों को लेकर सरकार की खिंचाई की थी और कहा था कि यूपी सरकार सुरक्षा नहीं कर सकती तो सेंट्रल फोर्स लगाई जायगी।

यह बताया जा रहा है कि हाई कोर्ट, सिविल कोर्ट, प्रशासनिक भवन, मेट्रो, एयरपोर्ट, शैक्षणिक औद्योगिक इकाइयों आदि की सुरक्षा के लिए यह बल बनाया जा रहा है।

बहरहाल जी भी हो, अगर यह सच भी हो कि महत्वपूर्ण सरकारी व प्राइवेट बिल्डिंगों की सुरक्षा के लिए UPSSF बनाई जा रही है, तो भी यह क्यों जरूरी है कि वारंट और मजिस्ट्रेट ऑर्डर जैसे विधिक प्रावधानों का उल्लंघन किया जाय और उसके पास एंटी-इंसरजेंसी बल जैसे ड्रकोनियन पॉवर्स हों ? क्या उप्र में इंसरजेंसी के हालात हैं ?

बहाने जो भी बनाये जाँय, सच यही है कि जनांदोलनों और राजनीतिक विरोधियों से निपटने के लिए इस बल का जिसे मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जा रहा है, एक नए काले कानून के तहत गठन किया जा रहा है।

सभी लोकतांत्रिक ताकतों को एकताबद्ध होकर इसका विरोध करना होगा।

लाल बहादुर सिंह (संस्थापक अध्यक्ष, आइसा)

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