भारत की जर्जर अर्थव्यवस्था का सच

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दक्षिणपंथी अधिनायकवाद का उदय दुनिया भर में लोगों को धार्मिक अथवा नस्लीय रेखाओं के आधार पर विभाजित करने के अतिरिक्त जनता विशेषकर श्रमिक वर्ग के लिए बेरोज़गारी को बढ़ावा देता है। यह भारत के लिए भी सही है।

भारत में भाजपा – आरएसएस के फासीवाद को वैश्विक पूंजीवाद के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक परिदृश्य में देखा जाना चाहिए! पश्चिम के बाज़ार बलों का आर्थिक संकट दुनिया के बाकी हिस्सों में भी मंदी, बेरोज़गारी तथा मुद्रास्फीति को प्रभावित करता है। जैसे जैसे आर्थिक संकट गहरा रहा है, सरकार न तो लोगों को रोज़गार एवम् आजीविका देने में सक्षम  है न ही जीवन सुरक्षा की गारंटी देने में। ऐसे में सरकार नफरत की राजनीति का सहारा लेकर लोगों के बीच वैमनस्य का भाव उत्पन्न कर रही है ताकि लोग एकजुट होकर सरकार से इन मुद्दों पर सवाल न करें। मोदी – शाह के शासन के इस दौर में गरिमापूर्ण जीवन जीने के अवयवों जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार की पूरी अनदेखी की जा रही है और सरकार का पूरा ध्यान गोदी मीडिया के माध्यम से साम्प्रदायिकता एवम् घृणा फैलाने पर है जो कि किसी भी फासीवादी अवधारणा का मूल है।

यहां हम देश की आर्थिक स्थिति पर चर्चा करेंगे जब मीडिया अपनी असल ज़िम्मेदारी भूल कर नफरत फैलाने में व्यस्त है।

  • वित्त वर्ष 2019-20 के दूसरे तिमाही में भारत का GDP मात्र 4.5% रहा और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री विशेष रूप से संकटग्रस्त रही जोकि लगभग जीडीपी का 7% हिस्सा है और प्रत्यक्ष एवम् अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 37 मिलियन लोगों को रोजगार देती है।
  • आज सरकार आर्थिक मंदी के सच को नकार नहीं सकती। वित्त मंत्रालय की इस मंदी को लेकर हालिया प्रक्रिया यह रही कि कॉर्पोरेट सेक्टर को 1450 बिलियन की कर मुक्ति दी गई। लगभग 1700 बिलियन जो सरकार ने RBI विनियोजित किया वह कॉर्पोरेट को उपहार स्वरूप दे दिया गया।
  • कराधान कानून संशोधन अधिनियम 2019 संसद में ठीक उस वक़्त पारित किया गया जब पूरे देश का ध्यान caa पर था। अधिनियम ने उन घरेलू कम्पनियों के टैक्स की दर को 25% से घटाकर 22% कर दिया जिनका टर्नओवर 450 करोड़ तक है तथा इससे अधिक टर्नओवर वाली कम्पनियों के टैक्स की दर को 30% से घटाकर 22% कर दिया।
  • एनपीए भी सितंबर 2019 में 12.7% की दर से बढ़ा और आरबीआई ने इसके सितंबर 2019 तक 13.2% पहुंचने की भविष्यवाणी की है। ऋण पुनरप्रप्ती की कमी, ऋण धोखाधड़ी ने इस वित्तीय उठा पटक को और बढ़ावा दिया ही।
  • भारत में बेरोज़गारी की दर 1983 से 2019 तक औसतन 5.16% रही किंतु अक्टूबर 2019 में यह दर अपने उच्चतम 8.50% पर थी। देश की मुद्रास्फीति दर नवम्बर महीने में 3 साल के उच्चतम पर थी। भारत के पूर्व सानख्यकिविद प्रणब सेन के अनुसार वित्त मंत्रालय वास्तविक समस्या की अनदेखी कर केवल आपूर्ति पक्ष पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। ” वित्त मंत्रालय मांग में आई कमी का निराकरण नहीं कर रहा।” सेन के अनुसार अर्थव्यवस्था दो या तीन तिमाहियों में ठीक हो सकती है अगर सरकार मेगा हाईवे परियोजनाओं से ध्यान हटाकर छोटे कोर सेक्टर की गतिवधियों पर ध्यान दे जिनसे तेज बदलाव आने की संभावना है।

यह सरकार जहां एक ओर हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों और संविधान को नष्ट कर रही है वहीं दूसरी ओर उन पूंजीपतियों की तिजोरियां भी भर रही है जिन्होंने BJP-RSS की इस सरकार को सत्ता हासिल करने में मदद की है। हमारे देश में हर रात भूखे सोने वाले 19 करोड़ लोगों की सांप्रदायिक कॉर्पोरेट मीडिया की चर्चाओं में कोई जगह नहीं है। इसीलिए इस फासीवादी सरकार के विरुद्ध लोगों को एकजुट होने की सख्त जरूरत है। BJP-RSS की जोड़ी धर्म के नाम पर श्रमिक वर्ग को विभाजित करने के लिए प्रयासरत है किन्तु साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे इन प्रयासों को ज़मीनी स्तर पर एक सतत् एवम् सतर्क चर्चा द्वारा विफल किया जा सकता है।यह समझना परमावश्यक है कि लोग कभी एक दूसरे के दुश्मन नहीं होते, ये अमीर और शक्तिशाली ही हैं जो हमारे खिलाफ हैं, हमारी जेब खाली करते हैं, हमारी शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को बर्बाद करते हैं और हमारे चुकाए हुए करों पर जीवित रहते हैं।

 

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