3 मार्च दिल्‍ली चलो! संसद मार्च में शामिल हों !

हरेक कैंपस में नियमित छात्रसंघ चुनाव तुरंत बहाल करो!

लिंगदोह की तानाशाही नहीं , प्रशासन और धनबल बाहुबल का हस्तक्षेप नहीं!

छात्रसंघ पर आम छात्रों की दावेदारी सुनिश्चित करो!

सब के लिए सस्ती, समान और अच्छी शिक्षा , सम्मानजनक रोजगार और कैंपस लोकतंत्र के लिए छात्रसंघ को हथियार बनाओ!

 

दोस्‍तों, संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है. मोदी सरकार का यह पहला बजट सत्र है. संसद में जब सरकार हमारीआपकी जिंदगी के बारे में अहम फैसले ले रही होगी तब आम जनता और छात्रोंयुवाओं के बुनियादी सवालों की धमक संसद तक पहुंचनी ही चाहिए. इसलिए संसद के इस सत्र के दौरान संसद के सामने हमें बड़ी तादाद में पहुंचना जरूरी है. इसी मकसद से 3 मार्च को देश भर के छात्रनौजवान कैंपस लोकतंत्र और बुनियादी अधिकारों की मांग के साथ संसद के सामने एकत्रित हो रहे हैं.

कॉरपोरेट्स के अच्छे दिन‘ : छात्रोंगरीबों के बुरे दिन

चुनाव से पहले मोदी का ‘अच्छे दिनों’ का वादा नौ महीना बीततेबीतते औंधे मुंह गिर चुका है. ‘अच्छे दिनआये तो हैं, लेकिन सिर्फ अंबानी, अडानी जैसे बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए. अदानी जैसे कॉरपोरेट्स को सार्वजनिक बैंकों से अरबों रुपए के लोन दिए जा रहे हैं. ‘अच्छे दिनछात्रयुवा और गरीबों के लिए नया कहर साबित हो रहे हैं. सुरक्षित और सम्मानजनक रोजगार के हर एक अवसर को तेजी से खत्म किया जा रहा है, अध्यादेशों के जरिये गरीब किसानों और आदिवासियों की जमीन छीनने का फरमान आ चुका है और गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा कानून में कटौती की जा रही है. दीनानाथ बत्रा की अंधविश्वास, झूठ और साम्प्रदायिकता से भरी हुई तथ्यविहीन किताबों को अनिवार्य पाठ्यपुस्‍तक की तरह थोपा जा रहा है. शिक्षाविदों की जगह आरएसएस से सम्बद्ध लोगों को नियुक्त किया जा रहा है. ऐसे समय में शिक्षा के भविष्य और गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए कैंपसों में लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए छात्रसंघों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी.

सम्‍मानजनक रोजगार के अवसरों पर हमला

शिक्षा के साथ यह सरकार सम्मानजनक रोजगार के अवसरों को भी सीमित कर रही है. इस सरकार के कार्यकाल की शुरुआत यूपीएससी के CSAT जैसी भेदभावपूर्ण नीति का विरोध कर रहे छात्रनौजवानों पर लाठीगोली चला करके हुई. इसके कुछ ही दिनों बाद SSC के परिणामों में बड़ा घोटाला हुआ. सरकार ने एक साल तक नौकरियों पर रोक लगा दी. नया प्रावधान लाकर IBPS में सफल हुए अधिकांश युवाओं को नौकरी देने से इंकार कर दिया. हाल ही में CSIR से क़रीब 250 वैज्ञानिकों को निकाल दिया गया. देशभर में 13 ESIC मेडिकल कॉलेजों को श्रम मंत्रालय के इशारे पर बंद करने की साजिश की जा रही है. यह सरकार संगठित क्षेत्र में अभी तक बची हुई सभी नौकरियों को तेजी से खत्म कर रही है. CSIR-UGC-NET-JRF की आवेदन फ़ीस 150% बढ़ा कर 400 रुपए से 1000 रुपए कर दी गई है. सरकार की इन छात्रयुवा विरोधी नीतियों के खिलाफ देशभर में सड़कों पर आन्दोलन हो रहे हैं.

विश्‍वविद्यालयों की स्‍वायत्‍तता को समाप्‍त करने की साजिश

सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता को ख़त्म करने के लिए एक बहुत ही खतरनाक कानून लाने की प्रक्रिया में है. यह कानून केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को सुरक्षित करने वाले सारे कानूनों को समाप्‍त कर देगा. सरकार का यह कदम विश्वविद्यालयों के विशिष्ट चरित्र और अकादमिक स्वतंत्रता का हनन करने वाला है. शिक्षकों की नियुक्तियों , प्रवेश परीक्षा, अकादमिक पाठ्यक्रम ले कर विश्वविद्यालय चलाने की नीतियाँ तक केंद्रीय तरीके से दिल्ली में MHRD के राजनीतिक उद्देश्य के अनुरूप चलाई जायेंगी. इस नीति का एक खतरनाक पहलू यह भी है कि किसी भी शिक्षक का तबादला किया जा सकता है. सरकार से भिन्‍न सोच रखने वाले किसी भी शिक्षक को इसका निशाना बनाया जा सकता है.

शिक्षारोजगार छीनने की तैयारी इसीलिए कैंपस लोकतंत्र पर हमला जारी

जब फ़ीस वृद्धि और जनविरोधी नीतियों को सरकारें सुधार के रूप में पेश करती हैं तब कैंपस लोकतंत्र और छात्रसंघ को खत्म करना उनके लिए जरूरी हो जाता है. जब जनविरोधी नीतियों की बाढ़ आई हुई है तो पूरे देशभर के कैंपसों में आम छात्रों के आवाज़ उठाने की सारी गुंजाइशों को समाप्त कर दिया गया है. योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा था कि “ उच्च शिक्षण संस्थानों में Unionisation एक प्रमुख बाधा है. अगर आप छात्रसंघ से बात करें तो मुझे नहीं लगता कि वो शिक्षा में सुधार के पक्ष में खड़े हैं. निश्चित तौर पर उनका मुख्य उद्देश्य फ़ीस को कम रखना ही होता है.” साथ ही कैंपसों में महिलाओं पर हमले भी बढ़े हैं. हाल ही में कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने कैंपस में हुई यौन हिंसा के खिलाफ ऐतिहासिक आन्दोलन लड़ा. चाहे बंगाल हो या उत्तर प्रदेश का लखनऊ विश्वविद्यालय, हम देख सकते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन गुंडा और आपराधिक तत्वों पर कार्रवाई करने की जगह ऐसे तत्‍वों का विरोध करने वाले छात्रों को ही निशाना बना रहा है. धनबलबाहुबल और गुंडा तत्वों पर लगाम लगाने के नाम पर देशभर में छात्रसंघों पर लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों के बहाने रोक लगा दी गई. देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में किसी भी तरह का छात्रसंघ चुनाव नहीं होता है और जहाँ होता भी है वहाँ धनबलबाहुबल का खेल जारी है. हाल ही में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने कठपुतली स्टूडेंट कौंसिल नहीं बल्कि संपूर्ण छात्रसंघ के लिए लड़ाई लड़ी, जिसमें एक छात्र की जान भी चली गई. उत्तरप्रदेश और बिहार के ज्यादातर कैंपसों में छात्रसंघ चुनाव नहीं होते हैं. इसलिए आम छात्रों के पास अपने हक की लड़ाई करने का कोई मंच ही नहीं है. जहाँ चुनाव हो भी रहे हैं वहाँ प्रशासन की सहभागिता से खुलेआम लिंगदोह कमिटी के धनबलबाहुबल रोकने के नाम पर आये प्रावधानों की धज्जियाँ उड़ाते हुए लाखों रुपए खर्च होते हैं और गोलियाँ चलती हैं.

  • आइए देखते हैं लिंगदोह कमिटी के प्रावधानों की असलियत

पिछले 8 सालों से देशभर में छात्रसंघों के चुनाव लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों के अनुरूप हो रहे हैं. लेकिन इन वर्षों में यही साबित हुआ है कि लिंगदोह कमिटी का उद्देश्य छात्रसंघ चुनावों में धनबलबाहुबल रोकना नहीं है. आइये देखें कि कैसे लिंगदोह कमेटी के प्रावधान छात्रसंघ चुनाव में आम छात्रछात्राओं की भागीदारी को रोकता है –

1 उम्र संबंधी रोक – लिंगदोह कमिटी के मुताबिक कैंपस का हरेक छात्र चुनाव नहीं लड़ सकता. स्नातक में 23 वर्ष , परास्नातक में 25 वर्ष और शोध के लिए 28 वर्ष की सीमा तय कर दी गई है. हम जानते हैं कि अमूमन पिछड़े इलाके से आने वाले छात्रछात्राएँ अपनी पढ़ाई देर से शुरू करते हैं. लिंगदोह कमिटी के इस प्रावधान से ऐसे तबके से आने वाले छात्रछात्राएं चुनाव लड़ने से वंचित हो जाते हैं. इस कारण इन्हें प्रतिनिधत्व नहीं मिल पाता.

2. दुबारा चुनाव लड़ने पर रोक लिंगदोह कमिटी के मुताबिक छात्रसंघ में दुबारा चुनाव नहीं लड़ा जा सकता. इससे एक तरफ अनुभवहीन प्रतिनिधि चुने जाते हैं वहीं दूसरी तरफ़ एक बार चुनाव जीत लेने पर उनकी कोई जबाबदेही तय नहीं की जा सकती.

3. छात्र अधिकारों के लिए लड़ रहे संघर्षशील छात्र नेताओं पर निशाना – लिंगदोह के अनुसार अगर कोई भी छात्र आन्दोलन करते हुए प्रशासनिक कार्रवाई का शिकार हुआ है तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता है. जमीनी सच्चाई यह देखने को मिलती है कि प्रशासन के चहेते, माफिया और अपराधी छात्र नेता जेल से चुनाव लड़ते हैं, लेकिन आम छात्रों के लिए प्रशासन से लड़ने वाला जमीनी छात्र नेता चुनाव नहीं लड़ पाता.

4. प्रशासनिक दखलंदाजी और कठपुतली छात्रसंघ लिंगदोह कमिटी के तहत आम छात्रों को नहीं बल्कि प्रशासन को चुनाव और छात्रसंघ नियंत्रित करने की खुली छूट है. ‘Grievance Redressal Cells’ के माध्यम से प्रशासन को चुने हुए छात्रसंघ को भी निलंबित करने की छूट प्राप्त है. ये और कुछ नहीं प्रशासनिक भ्रष्टाचार एवं आम छात्रों के सवालों पर आन्दोलन को नियंत्रित करने का तरीका है.

  • लिंगदोह कमिटी’ नवउदारवाद की जरुरत या आम छात्रों की ?

फ़ीस बढ़ोतरी से लेकर तमाम छात्र विरोधी कानूनों को थोपने के लिए जरुरत है कि छात्रसंघ कोई राजनैतिक सवाल न उठाएँ और महज एक क्लब बन कर रह जाएँ. छात्रसंघों के अराजनीतिकरण के लिए लिंगदोह कमिटी के सारे प्रावधानों को सजाया गया है. इन प्रावधानों के बावजूद धनबलबाहुबल का खुला इस्तेमाल होता है. यदि कहीं छात्रसंघ महत्वपूर्ण आन्दोलन खड़ा करता है तो लिंगदोह के नाम पर छात्रसंघ पर रोक लगा दी जाती है. इसी वजह से जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में भी 2008 से 2012 तक छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगी थी.

अंततः सवाल यह है कि क्या लिंगदोह की सिफारिशें हिंसा और धनबल पर रोक लगाने में सफल हुई है ? इस समाज में जहाँ पूरा सत्ताधारी ढांचा ही धनबलबाहुबल पर टिका है वहाँ इस तरह के महज कुछ तकनीकी पाबंदियों से इसे रोका नहीं जा सकता. जो प्रावधान लोकसभा और विधानसभा चुनावों में खुलेआम उल्लंघित होते हैं, हमारे कैम्पसों में भी कुछ इसी तरह की स्थिति है. दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में धनबलबाहुबल लिंगदोह के बावजूद प्रयोग में है.

कैम्पसों को इन बीमारियों से दूर रखना तभी संभव है जब सशक्त छात्र आन्दोलन के जरिए धनबलबाहुबल को बरकरार रखने वाली सत्ताधारी वर्ग की राजनीति को चुनौती दी जाए . और आम छात्रों की भागीदारी से एक वैकल्पिक राजनैतिक संस्कृति को मजबूत किया जाए . धनबलबाहुबल की राजनीति को छात्र प्रतिनिधियों की आम छात्रों के प्रति जबाबदेही तय करके ही खत्म जा सकती है. शिक्षा, रोजगार और कैंपस लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि छात्र समुदाय एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करे.

आने वाले 3 मार्च को दिल्ली चलें और सरकार को मजबूर करें –

1 तुरंत सारे कैंपसों में छात्रसंघ चुनाव सुनिश्चित कराओ!

2 लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों को वापस लो!

3 शिक्षा और सम्मानजनक रोजगार के अवसरों पर हमला बंद करो!

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