ट्रम्प का इम्पीचमेंट : लोकतांत्रिक संस्थानों पर ट्रम्प के हमले का एक परिणाम
ट्रम्प के शासन में प्रतिष्ठापित लोकलुभावनवाद का दूसरा लहर, जिसका सत्व दक्षिणपंथी बहुसंख्यकवाद है, वो सबकुछ दर्शाता है जो एक सुचारू लोकतंत्र और सर्वसमावेशी वृत्त, जिसका अमेरिका दावा करता है, के विरुद्ध है।
मेक्सिको से आए आप्रवासियों पर हमलों को ट्रम्प शासन ने हमेशा वैधता दी है, इस्लामोफोबिया का सूत्रपात किया है, मुसलमानों के ऊपर आतंकी होने का चिप्पी चिपकाया है और बहुपक्षीय वैश्विक वार्ताओं से दूसरे पक्षों से सलाह किए बगैर और बिना उनकी रजामंदी के कन्नी काट लिया है।
इसके अलावा, ‘राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए राजनैतिक ओहदे का जबरदस्त इस्तेमाल’ ट्रम्प शासन के अमेरिकी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमले का दूसरा पहलू रहा है।
दूसरे शब्दों में, चूंकि ट्रम्प की कोशिश हमेशा अपने ओहदे का ग़लत इस्तेमाल कर निजी चुनावी लाभ लेने की रही है, हम ट्रम्प द्वारा लोकतांत्रिक ढांचों और प्रक्रियाओं का विनाश देख रहे हैं।
हाल ही में अमेरिका के हाउस ऑफ़ रीप्रज़ेन्टेटिव ने राष्ट्रपति ट्रंप पर महाभियोग लगाया जिसके बाद समय से पहले पदच्युत होने वाले वो तीसरे अमेरिकी राष्ट्रपति बने(एंड्रयू जॉनसन और बिल क्लिंटन पर महाभियोग लगाया गया था तथा रिचर्ड निक्सन ने वॉटर गेट प्रकरण में महाभियोग प्रस्ताव आने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था)।
2020 चुनाव को प्रभावित करने के लिए ओहदे के ग़लत इस्तेमाल कर यूक्रेन की मदद मांगने के कारण ट्रम्प पर महाभियोग प्रस्ताव लाया गया।
सीधे तौर पर, ट्रम्प ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल अपने लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धी, जोए बिडेन के ख़िलाफ़ तहक़ीकात के लिए यूक्रेन को विवश करने के लिए किया।
ट्रम्प ने यूक्रेन को दी जाने वाली 311 मिलियन डॉलर की सैन्य मदद, जो 2014 से ही दोनों देशों के बीच हुए समझौते का हिस्सा था, को रोक दिया।
इस वित्तीय मदद का उपयोग ट्रम्प ने यूक्रेन से इस सौदे के रूप में किया कि यूक्रेन इसके बदले पूर्व राष्ट्रपति, जोए बिडेन, जो मुख्य प्रतिद्वंदी थे, सत्तारूढ़ ट्रम्प और अपने बेटे हंटर बिडेन के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे, के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का केस फ़िर से खुलवाए।
यह जनता को प्रभावित कर 2020 के चुनाव में लोगों को रिपब्लिकन्स के पक्ष में करने के लिए किया गया था।
दो आरोप, जो सदन ने ट्रम्प के ऊपर लगाया, वो थे- सत्ता का दुरुपयोग तथा कांग्रेस और न्याय में बाधा।
सत्ता के दुरुपयोग और लोकतांत्रिक ढांचों और प्रक्रियाओं पर हमलों के लिहाज से मोदी और ट्रम्प में काफ़ी समानताएं हैं।
भारत में नरेन्द्र मोदी ने ईडी, सीबीआई और एनआईए जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विपक्षी दल के नेताओं और राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को निशाना बनाने के लिए किया है, पी. चिदंबरम जिसके ताज़ा उदाहरण हैं।
इसने निस्संदेह शासन के विशिष्ट संस्थाओं की पवित्रता भंग की है और उन्हें ‘शक्तिशालियों के हाथ का औजार मात्र’ में परिवर्तित कर दिया है।
दूसरे स्तर पर, मोदी अपने विरोधियों को पाकिस्तान-परस्त, देशद्रोही और न जाने कैसी-कैसी उपाधियों से नवाज़ते हैं।
समान युक्ति अपने राजनैतिक विरोधियों को बदनाम करने के लिए संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौते की क़ीमत पर भी ट्रम्प द्वारा भी प्रयोग में लाई जाती हैं।
दोनों, मोदी और ट्रम्प, इस रणनीति में उस्ताद हैं।
ट्रम्प महाभियोग की कथा को 2020 चुनाव के दौरान मि. बिडेन के ऊपर राजनैतिक हमले के तौर पर इस्तेमाल करने को आशान्वित हैं।
लेकिन रेखांकित करने योग्य बात यह है कि इन सत्तावादी और लोकतंत्र-विरोधी नेताओं ने जनाकांक्षाओं को हल्के में लिया है और यही कारण है कि वो अपने शीर्ष स्थान पर बरकरार हैं।
विभिन्न बलयुक्त और वैचारिक माध्यमों की मदद से वे अपने पक्ष में सहमति का निर्माण करने को आशान्वित हैं।
पीत-पत्रकारिता की मदद से दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पक्ष में विचार और सहमति के निर्माण हेतु लोकतंत्र की सांस्थानिक प्रक्रियाओं से घालमेल की घटनाओं ने यहां तक कि प्राचीनतम लोकतंत्रों में भी अपनी जड़ें मजबूत कर लीं हैं, इतना ज्यादा कि सत्तारूढ़ इससे राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश करते हैं।
यह प्रवृत्ति हालांकि परेशान करने वाली है लेकिन उम्मीद की किरण भी दिखाती है कि लोगों को अब ‘इंडिया फर्स्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का मिथ्याभिमान अब नहीं होना चाहिए।
इन नारों की पोल एक ऐसे मुखौटे के रूप में खुल चुकी है जो झूठ के ऊपर ख़ूब फ़बते हैं और इन नारों का संकीर्ण उद्देश्य सत्ता-प्राप्ति मात्र है।
संवैधानिक लोकतंत्र के इस अंग-भंग को दंड देने की आवश्यकता है।
पक्षपातपूर्ण राजनीति के लिए सत्ता के दुरुपयोग (भले ही सफल हो या असफल) को मतदाताओं द्वारा जांचे-परखे जाने की ज़रूरत है।
इस संदर्भ में अमेरिका का आगामी चुनाव दक्षिणपंथी बहुसंख्यकवादी राजनीति के लिए विश्व-भर में प्रतिक्रिया और प्रभाव के कारण लिटमस टेस्ट के रूप में काम करेगा।
दांव पर लगी ये लड़ाई, लोकतांत्रिक मूल्यों, लोकतांत्रिक और पारदर्शी ढांचों की लड़ाई है।
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