Speak

Speak, your lips are free.
Speak, it is your own tongue.
Speak, it is your own body.
Speak, your life is still yours.

See how in the blacksmith’s shop
The flame burns wild, the iron glows red;
The locks open their jaws,
And every chain begins to break.

Speak, this brief hour is long enough
Before the death of body and tongue:
Speak, ’cause the truth is not dead yet,
Speak, speak, whatever you must speak.

Translated by Azfar Hussain
http://www.poemhunter.com/poem/speak-4/

admin

5 thoughts on “Speak

  1. @lalit matiyali

    बोल, कि लब आज़ाद हैं तेरे
    बोल, ज़बां अब तक तेरी है
    तेरा सुतवां जिस्म है तेरा
    बोल, कि जाँ अब तक तेरी है
    देख कि आहन-गर की दुकां में
    तुन्द हैं शोले, सुर्ख हैं आहन
    खुलने लगे कुफ्लों के दहाने
    फैला हर इक ज़ंजीर का दामन
    बोल, कि थोड़ा वक्त बहुत है
    ज़िस्मों ज़ुबां की मौत से पहले
    बोल, कि सच ज़िन्दा है अब तक
    बोल, जो कुछ कहना है कह ले

    फैज़ अहमद फैज़

  2. @hemlal
    आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो
    चश्मे-नम जाने शोरीदा काफी नहीं
    तोहमते इश्क पोशीदा काफी नहीं
    आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

    दस्ते आफ्शां चलो मस्तो रक्सां चलो
    खाक-बर-सर चलो खूं-ब-दांमां चलो
    राह तकता है शहरे जानां चलो
    आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

    हाकिमे शहर भी मजमा-ऐ-आम भी
    तीरे इल्जाम भी संगे दुशनाम भी
    सुबहे नाशाद भी रोज़े नाकाम भी
    आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

    इन का दमसाज़ आपने सिवा कौन है
    शहरे जानां में आब बासफा कौन है
    दस्ते कातिल के शायां रहा कौन है

    रक्से दिल बांध लो दिल फिगारा चलो
    फिर हमीं कत्ल हों आओ यारा चलो
    आज बाज़ार में पा-ब-जूंला चलो

    फैज़ अहमद फैज़

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